Thursday, 30 June 2016

*" कन्यादान "* जाओ , मैं नहीं मानता इसे , क्योंकि मेरी बेटी कोई चीज़ नहीं , जिसको दान में दे दूँ ; मैं बांधता हूँ बेटी तुम्हें एक पवित्र बंधन में , पति के साथ मिलकर निभाना तुम , मैं तुम्हें अलविदा नहीं कह रहा , आज से तुम्हारे दो घर , जब जी चाहे आना तुम , जहाँ जा रही हो , खूब प्यार बरसाना तुम , सब को अपना बनाना तुम , पर कभी भी , न मर मर के जीना , न जी जी के मरना तुम , तुम अन्नपूर्णा , शक्ति , रति सब तुम , ज़िंदगी को भरपूर जीना तुम , न तुम बेचारी , न अबला , खुद को असहाय कभी न समझना तुम , मैं दान नहीं कर रहा तुम्हें , मोहब्बत के एक और बंधन में बाँध रहा हूँ , उसे बखूबी निभाना तुम ................. *- एक सोच एक पहल*
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