खोने की दहशत और पाने की चाहत न होती, तो ना ख़ुदा होता कोई और न इबादत होती .
जरूरत और चाहत में बहुत फ़र्क है… कमबख्त़ इसमे तालमेल बिठाते बिठाते ज़िन्दगी गुज़र जाती है !!!!
हमारा कत्ल करने की उनकी साजीश तो देखो…… गुजरे जब करीब से तो चेहरे से पर्दा हटा लिया….
लाख दिये जलाले अपनी गली मे..? मगर रोशनी तो हमारे आने से ही होगी.
Jee karta hai muft me hi use apni jaan de du, Itne masoom kharid’dar se kya len-den karna…
Thursday, 30 June 2016
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